Ajay

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जुस्तजू भाग --- 11

उन्हें चाहने की फुरसत नहीं !!!

 पर उनके दिल पर हमारा कब्ज़ा है।।


दोनों एक दूसरे को आश्चर्य मिश्रित खुशी से देख रही थी। आरूषि ने पहले उनको आरती दी फिर उनके पैर छुए। उन्होंने उसे गले से लगा लिया। आरूषि फिर से किसी अपने को पाकर बेहद खुश थी।  बुआ और डैडजी ही थे। जिन्होंने उस एक्सीडेंट में मम्मी पापा के जाने और उसकी याददाश्त चले जाने के बाद पूरी तरह संभाला था।  बुआजी के पति उससे डैड जी ही कहलवाते थे। पर उसके मेडिकल में सलेक्शन होते समय वे भी भगवान जी के पास चले गए थे और किसी को खोने के डर से उसने बुआ जी से दूरी बना ली थी। बुआ जी भी अपने पति के अचानक जाने से जिम्मेदारियों में ऐसी उलझी कि उससे मिलने के लिए समय निकाल ही नहीं पाई। बस आज भी उसकी सारी संपत्तियों की देखभाल वहीं करती थी और उसके बैंक में पैसे जमा करवा देती थी। पर एक जगह न टिक पाने से उसे कभी बात नहीं कर पाती थी। उन्हें उसकी शादी का भी पता नहीं था।

"अब क्या करूं ? क्या जवाब दूंगी ?" उनसे लिपटे हुए उसके सोच का कारवां चल पड़ा था।" पर इन्हें यहां का पता कैसे चला ? अनुपम से कैसे मिलाऊं ? और ईशान ?" वह अपनी सोच में गुम थी कि उसे अनुपम की आवाज़ सुनाई दी वह शायद कॉल बेल की आवाज़ पर उठ आया था।

"मम्मी, आप यहां ?? ख़बर क्यों नहीं की ?" वह तेजी से उतरकर आया था और उनके पैर छूते हुए बोला।

"मम्मी ?" ये बुआ मां को ऐसे क्यों बुला रहे हैं ? ओह ! तो ये हैं क्या इनके बेटे, जो आईआईटी बॉम्बे में पढ़ रहे थे !! उफ्फ सही बोल रहे थे कि ये इंजीनियर है ? तो बुआ मां ही मेरी सास है ? अब क्या करूं ? मां ही बुलाऊं ? रुक जा आरूषि। जरा देख तो क्या कहते हैं !!"

"यादव का फ़ोन आया था। आतंक क्यों फ़ैला रखा है ? और यह आरु ?? यह यहां कैसे ? कहां मिली तुझे ??"

"मम्मी, पहले पानी लीजिए और बताइए इतनी रात को कैसे पहुंची ??"

"सीधे नैनी एअरपोर्ट (प्रयागराज) से आ रही हूं। अब मेरे सवालों के उत्तर देने की तेरी बारी है।"

"मम्मी यही है जिसके बारे में मैने होश आते ही बताया था।"

दोनों फिर से हैरानी से एक दूसरे को देख रही थी।
"आरू ही है मेरी बहू !!!"मम्मी का देखने का अंदाज़ बदल गया था।

यह सुनते ही जैसे आरूषि को होश आया। वह शर्माकर तुरंत अंदर भाग गई।

"तो भगवान ने तेरे पापा की इच्छा पूरी कर दी।" उन्होंने कुछ देर बाद सोफे पर बैठते हुए बोला।

"मम्मी मैंने उसे कोई पुरानी याद नहीं दिलाई है। जो हुआ सब अपनें आप हुआ था" अनुपम उसके एक्सीडेंट में याददाश्त जाने की बात से परिचित था।

मम्मी को आरूषि के पिता बहन मानते थे। पर उसकी मां सहेली भी थी उनकी। मम्मी आरूषि के पिता के स्वभाव और उसकी मम्मी के शादी के बाद सिर्फ हाउस वाइफ बनने के निर्णय से खफा थी तो बेहद कम बोलती थी। वैसे भी उनको प्यार जताना नहीं आता था तब।

आरूषि उनके बारे में कुछ कुछ जानती थी। उसने तुरंत नौकर से सामान अंदर मंगवा लिया। मम्मी जी भूखे और थके भी होंगे
उसने जल्दी जल्दी रसोई में तैयारी शुरू कर दी। मम्मी जी के बेहद कम बोलने के कारण वह उनसे डरती भी थी। मम्मी जी भी उसकी तरह कान्हा को पूजती थी और बिना उनको भोग लगाए कुछ भी नही खाती थी। पर विचारों से वह अपने समय से काफ़ी आगे थी। बुआ के रूप में उनकी ममता और सुरक्षा से भली भांति परिचित थी।

"तुम अब भी मेरे लिए मेरी बेटी ही रहोगी। जैसे चाहे पुकार सकती हो" वे उसके पीछे रसोई में चली आई थी। 

 तभी बच्चा भी उठ गया था और उसे ढूंढते हुए वहां आ गया था।
"मम्मी आप तहां हो ? वह अपरिचित माहौल और घर में उभरे शोर से घबराया हुआ रो रहा था।

आरूषि ने उसे गोद में लिया और चुप कराकर मम्मी जी के पैर छूने को बोला। वह पहले डरा पर उनके चेहरे पर बरसते प्यार को देखकर उनके पास चला गया। उन्होंने उसे गोद में उठा लिया और प्रश्नसूचक दृष्टि से आरूषि की ओर देखा।
मां भी उठ गई थी और माहौल देखकर समझ गई थी।

"आपको पोता है" उन्होंने दोनो की मुश्किल आसान कर दी।
मम्मीजी उसे गोद में लिए वहां से चली गई पीछे पीछे मां भी चली गई।

आरूषि की जैसे सांसे लौट आई थी।

अनुपम भी चुपचाप तैयार हो गया था। वह भी अपनी मां से थोडा डरता था। उसकी मां भी इंजीनियर थी पर कभी नौकरी नहीं की थी। पिता के निधन पर भी उन्होंने ख़ुद का बिजनेस करना ही चुना था और बहुत संघर्ष करके अपने लिए एक मुकाम पाया था। वह अपना बिजनेस मुंबई शिफ्ट कर चुकी थी। अनुपम भी उनके कारण ही विदेश छोड़कर आ गया था और सिविल सर्विसेज में सलेक्ट होकर उनका सपना पूरा किया था। अभी वह आरूषि के सामने जाकर उसे ऑकवर्ड फील नहीं कराना चाहता था इसलिए जब तक वह रसोई में थी, तैयार हो गया था।

"यादव जी, क्या हो रहा है ?"उसने अपने पीए को फ़ोन किया।

"सर, सब तैयारी कर ली गई है। सीएमओ और सीएम साहब के पर्सनल सेक्रेट्री को अपडेट कर दिया गया है। आपके आते ही वीडियो कांफ्रेंसिंग से संपर्क करवा दिया जाएगा।"

"तैयारी तो मम्मी जी के आने से पूरी हो गई न !! "

यादव जी के मुंह पर ताला लग गया था। आरूषि ने नाश्ता तैयार करके सबके लिए भिजवा दिया था और अनुपम के लिए कॉफी तैयार करवा दी थी। सब करके वह कमरे में चली आई थी। जो कि अनुपम का ही बैडरूम था। उसका सभी सामान वहीं रखवाया था। अब उसकी सोच मम्मी पर केंद्रित थी जिनके साथ आज अचानक यह रिश्ता जुड़ा था।
उसे अकेले पाकर अनुपम वहीं आ गया। वह उठ गई।

"मम्मी ज्यादा नहीं रुकती, ज्यादा से ज्यादा कल तक। तब लखनऊ में एडमिशन करवाने ले चलूंगा।"

"वह तस्वीर पूजा घर में क्यों थी ?"

"कौनसी"

"वह...... कुल्लू वाली !!"

"यहां आलमारी भी देख लेना फिर एक साथ सारे सवाल पूछ लेना।"

आरूषि उसके जवाब से फिर चकरा गई थी।

"यहां छुपकर बैठी हो।"

वह चौंक गई। मम्मी जी आ गई थी।

"रिश्ता बदला है पर मेरे लिए बेटी ही रहोगी।" वे उसके पास बैठती हुई बोली। आरूषि के आंसू निकल पड़े।

"बेटियां मां से मिलते हुए रोती अच्छी नहीं लगती।" मम्मी ने उसे अपने से चिपका लिया। मां से उन्हें उसके संघर्ष का पता लग चुका था और उन्हें ही दोनों के जीवन में सब ठीक करना था।

"उसने तुमसे कोई धोखा नहीं किया। उसका एक्सीडेंट हो गया था और कई महीनों वह बेहोश रहा था। फिर जब ढूंढा तुम्हें तो पता नहीं चल पाया।"

आरूषि अवाक देख रही थी उन्हें उसे शॉक लगा था। मम्मी को समझ आ गया था। उन्होंने उसे अपनी गोद में खींच लिया और उसका सर सहलाने लगी। कई सालों बाद मिले इस प्यार ने उसके दर्द को आंसुओं और सिसकियों में बदल दिया था। उसका मन का बोझ जैसे ही उतरा वह फिर से सो गई थी। आख़िर ममता की छांव मिल गई थी न !!
मम्मी उसे सोते छोड़कर चली गई।

शाम होने को थी आखिर दिसंबर के आखिरी दिन चल रहे थे। आरूषि की आंख खुली। उसे आलमारी खोलने की बात याद आ गई।

 आलमारी में उसके कंगन डोरे, उसका लहंगा ओढ़नी और उस रात अनुपम के साथ के फ़ोटो जैसी चीजें संभाल कर रखी थी। एक फाइल में मैरिज सर्टिफिकेट और अनुपम के सर्विस रिकॉर्ड में लगने वाले परिवार सूची की फोटोस्टेट रखे थे। अनुपम सच में उसे नहीं भूला था, इन सब और मम्मी जी की बात ने उसे समझा दिया कि हालातों का मारा वह भी था। अब उसे अनुपम के लौटने का बेसब्री से इंतज़ार था।

पर उसकी किस्मत !!!! उसे भी तो इन्तजार था रात का, ताकि आरूषि की जिन्दगी फिर से पलट दे वो..





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8 Comments

Seema Priyadarshini sahay

06-Feb-2022 05:48 PM

बहुत बढ़िया भाग

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Ajay

12-Feb-2022 12:09 AM

धन्यवाद सीमा जी। आगे के भागों पर भी आपकी समीक्षा का इन्तजार रहेगा।

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Arshi khan

09-Jan-2022 11:42 AM

इंट्रेस्टिंग

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Ajay

09-Jan-2022 01:05 PM

अगले भाग भी प्रकाशित हो चुके हैं। उन पर भी आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

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Uff kitne ghumavdar rste hn uljh jata h mn

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Ajay

24-Dec-2021 12:19 AM

कभी कभी ऐसे मोड़ आते ही हैं। हम विलेनों का सामना कर सकते हैं पर हमारी जिंदगी जब बदलने पर उतारू हो जाए तो.....।

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